रविवार, 6 दिसंबर 2020

हसरतो के मुक़ाम बदले

हसरतो के मुक़ाम बदले है ।

काम के अंजाम बदले है ।

चाह में एक नई मंजिल के ,

चाहतों के नाम बदले है ।

देखकर होश में रिंद को ,

साक़ी के सलाम बदले है ।

 न रही जब मय प्यालों में ,

 तब रिंद के जाम बदले है ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@...

डायरी 7

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