मेरा मन्दिर मेरे आंगन में ।
तेरा मन्दिर तेरे आंगन में ।
बरसे कृपा उसकी हरदम ,
जैसे बूंदे बरसें सावन में ।
वो नाप रहा है भांप रहा है ,
उतरा कितना मन वर्तन में ।
समय लगा है क्षण भर का ही,
भरने कृपा उसकी जीवन में ।
साथ चला है वो हरदम तेरे ,
न ला संसय तू कोई मन में ।
बीतेगा ये कठिन समय भी ,
"निश्चल"फूल खिलेंगे मधुवन में ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 7
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