गुरुवार, 26 अक्तूबर 2023

अँधेरो में बिखरी उजाली रही है

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अँधेरो में बिखरी उजाली रही है ।

चला हूँ नज़र राह आती रही है ।


दिखाते रहे हाल हालात को भी ,

ज़ख्म ये पुराने निशानी रही है ।


मिला है नसीबा मुक़द्दर जहाँ भी  ,

जिंदगी तक़दीर से मिलाती रही है ।


मिलाते रहे ज़िस्म-ओ-जां निगाहें ,

यहाँ रूह भी तो रूहानी रही है ।


तरसता है वो चाँद भी चाँदनी को ,

जुदा चाँदनी भी दिवानी  रही है ।


कटी है निग़ाहों में जो रात सारी ,

वही रात ही तो सुहानी रही है ।


.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

डायरी 6(143)

मिला है मुकद्दर मुक़द्दर से भी कभी ,

25/10/23


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