गुरुवार, 26 अक्तूबर 2023

रोक लिया इन अश्कों को ,

 731

रोक लिया इन अश्कों को ,

उन मुस्कानों की ही ख़ातिर ।


हार चला ख़ुद को ख़ुद से ही ,

उन अरमानों की ही ख़ातिर ।


होकर ग़ुम अपने उजियारों में ,

उनकी पहचानों की ख़ातिर ।


 शान्त भाब स्तब्ध निगाहें ,

 अपने इमानों की ख़ातिर ।


.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

डायरी 6(142)

Blog post9/6/19

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...