गुरुवार, 26 अक्तूबर 2023

सँभलते नहीं हैं हालात

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सँभाले से सँभलते नहीं हैं हालात कुछ ।

बदलते से रहे रात हसीं ख़्यालात कुछ ।


होता गया बयां ,हाल सूरत-ऐ-हाल से ,

होते रहे उज़ागर, उम्र के असरात कुछ ।


बह गया दर्या ,  वक़्त का ही वक़्त से ,

करते रहे किनारे, ज़ज्ब मुलाक़ात कुछ ।


 थम गया दरियाब भी, चलते चलते ,

 ज़ज्ब कर , उम्र के मसलात कुछ ।


"निश्चल" रह गये ख़ामोश, जो किनारे ,

झरते रहे निग़ाहों से ,  मलालात कुछ ।


.... विवेक दुबे"निश्चल"@....


डायरी 6(140)

Blog post 25/10/23

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