सोचता हूँ कुछ लिखूँ आज के हालात पर ,
एक दबी हुई आह, सिसकते ज़ज्बात पर ।
मस्जिदों की अजां, मंदिरों के शंख नाद पर ।
बैचेन युवा की डिग्रियों के भँडार पर ।
भोजन की थाली से हर दिन घटते भात पर ।
सोचता हूँ कुछ लिखूँ आज के हालात पर ।
सरहद पर होते घात के हर वार पर ।
उन सच्चे वीरो के हर प्रयास पर ।
सोचता हूँ कुछ लिखूँ आज के हालात पर ।
राजनीत में बिछी शतरंज की बिसात पर ।
हर जन सेबक के विश्वास घात पर ।
आस लगाए फिर भी इस मन के विश्वास पर ।
सोचता हूँ कुछ लिखूँ आज के हालात पर ।
..... विवेक दुबे "विवेक"©.....
काव्य रंगोली में प्रकशित
मुझे काव्य रंगोली लखीमपुर खीरी द्वारा प्रदत्त मातृत्व ममता सम्मान 2018
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