सोमवार, 9 अक्तूबर 2017

आज के हालात


सोचता हूँ कुछ लिखूँ आज के हालात पर ,
  एक दबी हुई आह, सिसकते ज़ज्बात पर ।

 मस्जिदों की अजां, मंदिरों के शंख नाद पर ।
 बैचेन युवा की डिग्रियों के भँडार पर ।

 भोजन की थाली से हर दिन घटते भात पर । 
 सोचता हूँ कुछ लिखूँ आज के हालात पर ।

 सरहद पर होते घात के हर वार पर ।
 उन सच्चे वीरो के हर प्रयास पर ।

 सोचता हूँ कुछ लिखूँ आज के हालात पर ।
 राजनीत में बिछी शतरंज की बिसात पर ।

 हर जन सेबक के विश्वास घात पर ।
  आस लगाए फिर भी इस मन के विश्वास पर ।

  सोचता हूँ कुछ लिखूँ आज के हालात पर ।

   ..... विवेक दुबे "विवेक"©.....



काव्य रंगोली में प्रकशित 

मुझे काव्य रंगोली लखीमपुर खीरी द्वारा प्रदत्त मातृत्व ममता सम्मान 2018

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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