शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

कर्तव्य पथ




कर्तव्य पथ बड़े हों, सत्य से सजे हों ।
 सत्कर्म से चलें जो, *उन्नति के द्वार* खुले हों।
  
  समय चाहे विकट हो,बाधाएँ भी अथक हों ।
 सत्य से न डिगे जो, *उन्नति के द्वार* खुलें हों।

  मरुस्थल जो मिले हों,पग पग जले हों ।
 निर्भीक चले जो, *उन्नति के द्वार*  खुले हों ।

 साँझ का आभास हो, क्षितिज सा प्रकाश हो।
 मन दृढ़ विश्वास जो, *उन्नति के द्वार*  खुले हों।

  सत्य की सुगंध हो, हौंसले भी बुलंद हों।
 जीत लें असत्य सभी,इतना सा द्वंद हो ।
   ..... विवेक दुबे ©.....

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...