रविवार, 8 अक्तूबर 2017

दिनकर तो कल फिर निकलेगा


फैला था दूर तलक वो,
 कुछ बिखरा बिखरा सा ।
  यादों का सामान लिए ,
 कुछ चिथड़ा चिथड़ा सा ।

            दूर निशा नभ में श्यामल सी ,
          यादों के आंगन में काजल सी ।
           बैठा आस लिए उजियारों की,
           फिर नव प्रभात के तारों की  ।

  आएगा दिनकर फिर दमकेगा ।
  नक्षत्र जगत में फिर चमकेगा ।
 यह घोर निशा ही अंत नही ,
 दिनकर तो कल फिर निकलेगा ।

          ....विवेक दुबे "निश्चल"@...




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