फैला था दूर तलक वो,
कुछ बिखरा बिखरा सा ।
यादों का सामान लिए ,
कुछ चिथड़ा चिथड़ा सा ।
दूर निशा नभ में श्यामल सी ,
यादों के आंगन में काजल सी ।
बैठा आस लिए उजियारों की,
फिर नव प्रभात के तारों की ।
आएगा दिनकर फिर दमकेगा ।
नक्षत्र जगत में फिर चमकेगा ।
यह घोर निशा ही अंत नही ,
दिनकर तो कल फिर निकलेगा ।
....विवेक दुबे "निश्चल"@...
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