तन्हा वक़्त छीन रहा बहुत कुछ ।
हँसी लेकर वक़्त दे रहा सब कुछ
बून्द चली मिलने सागर तन से ।
बरस उठी बदली बन गगन से ।
क्षितरी बार बार बिन साजन के ।
बहती चली फिर नदिया बन के ।
एक दिन बून्द प्यार की जा पहुँची ,
मिलने साजन सागर के तन से ।
.... विवेक दुबे°©.....
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