सोमवार, 9 अक्तूबर 2017

वक़्त



तन्हा वक़्त छीन रहा बहुत कुछ ।
 हँसी लेकर वक़्त दे रहा सब कुछ

         बून्द चली मिलने सागर तन से ।
         बरस उठी बदली बन गगन से ।

 क्षितरी बार बार बिन साजन के ।
 बहती चली फिर नदिया बन के ।

       एक दिन बून्द प्यार की जा पहुँची ,
         मिलने साजन सागर के तन से ।

        .... विवेक दुबे°©.....


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