वो रात बड़ी यह दिन छोटे से ।
वादों के अहसासों को खोते से ।
वादों के इस बंजर में ही ,
यादों को अक्सर बोते से ।
तप्त नीर नयन सींचे जिनको ,
कुछ कुम्हलाये अंकुर खोते से ।
सपनों के रैन बसेरों में ,
भोर भए तक रहने से ।
सांझ चली आने के पहले ,
पग पग चलते ही रहने से ।
हर सांझ एक नया ठिकाना ,
फिर नई सहर होने पहले से
बढ़ता चल यूँ ही मंजिल पे ,
सफ़र तमाम होने पहले से ।
जीवन की इन राहों में ,
"निश्चल"नही बिछौने से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
वादों के अहसासों को खोते से ।
वादों के इस बंजर में ही ,
यादों को अक्सर बोते से ।
तप्त नीर नयन सींचे जिनको ,
कुछ कुम्हलाये अंकुर खोते से ।
सपनों के रैन बसेरों में ,
भोर भए तक रहने से ।
सांझ चली आने के पहले ,
पग पग चलते ही रहने से ।
हर सांझ एक नया ठिकाना ,
फिर नई सहर होने पहले से
बढ़ता चल यूँ ही मंजिल पे ,
सफ़र तमाम होने पहले से ।
जीवन की इन राहों में ,
"निश्चल"नही बिछौने से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें