बसंत के मौसम में ।
झड़ते पतझड़ से ।
झरने वो निर्मल से ।
झरते जो निर्झर से ।
भाव जगे उर से ।
शून्य रहे नभ से ।
चँदा की चितवन में ।
तारों की झिलमिल से ,
बहने की चाहत में ,
"निश्चल" सागर से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल@....
झड़ते पतझड़ से ।
झरने वो निर्मल से ।
झरते जो निर्झर से ।
भाव जगे उर से ।
शून्य रहे नभ से ।
चँदा की चितवन में ।
तारों की झिलमिल से ,
बहने की चाहत में ,
"निश्चल" सागर से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल@....
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