बुधवार, 23 मई 2018

सजते थे गुलशन

 सजते थे गुलशन आशाओं में ।
 उठती खुशबू अभिलाषाओं में ।

  हिमकण सा जमता वो रक्त, 
  उबला था कभी शिराओं में ।

  लुप्त हुए सभी दिवा स्वप्न , 
 जन मानस की आशाओं से ।

  आई थी लहरें जो सागर की ,
  लौट चली वापस दिशाओं में ।

  प्रभात हुआ था जो स्वर्णिम सा ,
 जा लिपटा संग निशा बाहों में ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
Blog post 23/5/18

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