शनिवार, 29 सितंबर 2018

आंतों की कतरन

कुछ शब्दों की सिकुड़न सी ।
कुछ भावों की जकड़न सी ।
 आश नही कोई आँखों में ,
 भूखी आंतो की कतरन सी ।
.
सिहर उठा हिमालय भी ,
धड़की जब धड़कन सी ।
नींद नही अब आँखों में ,
निग़ाह थमी तड़फन सी ।

 रीत रहा दिनकर दिन से ,
 सांझ नही अब दुल्हन सी ।
उठतीं लहरें सागर तट से ,
 लौट चली अब बेमन सी ।
 ... विवेक दुबे"निश्चल"@...


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