रुकना नही इन राहों पे ,
बस चलते ही जाना है ।
मंजिल लक्ष्य नही मेरा ,
मंजिल तो एक ठिकाना है ।
भोर तले चँदा के संग,
तारों को छिप जाना है ।
सूरज की ही गर्मी से ,
सूरज को पिघलना है ।
तप्त धरा अंगारों सी ,
क़दम मुझे बढ़ाना है ।
शब्दों की शीतलता से ,
अर्थ मुझे पिघलना है ।
रुकना नही इन रहो पे ,
बस चलते ही जाना है ।
"निश्चल" से निष्छल मन को ,
दूर क्षितिज तक जाना है ।
रुकना नही इन राहों पे ,
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
बस चलते ही जाना है ।
मंजिल लक्ष्य नही मेरा ,
मंजिल तो एक ठिकाना है ।
भोर तले चँदा के संग,
तारों को छिप जाना है ।
सूरज की ही गर्मी से ,
सूरज को पिघलना है ।
तप्त धरा अंगारों सी ,
क़दम मुझे बढ़ाना है ।
शब्दों की शीतलता से ,
अर्थ मुझे पिघलना है ।
रुकना नही इन रहो पे ,
बस चलते ही जाना है ।
"निश्चल" से निष्छल मन को ,
दूर क्षितिज तक जाना है ।
रुकना नही इन राहों पे ,
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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