बुधवार, 20 जून 2018

मुक्तक आदमी 436



स्वयं को सँवारता आदमी ।
अन्य को बिसारता आदमी ।
 थोथले दम्भ के बल पर ,
 स्वयं को उभारता आदमी ।

 आदमी को यूँ मारता आदमी ।
 आदमी से यूँ कट रहा आदमी ।
 आज आदमियत की राह से ,
 आदमी से यूँ भटक रहा आदमी ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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