निगाहें हमे अब झुकानी है ।
हया इस जहां की निशानी है ।
करते थे जो बातें हालात की ।
निग़ाहें अब उनकी पुरानी है ।
हसरत न रही अब कुछ भी ,
शराफत-ऐ-सियासत निशानी है ।
जहाँ कत्ल हुआ ईमान भी ,
यहाँ मौत भी अब सयानी है ।
उसे याद ही नही कुछ भी ,
उसे याद फिर दिलानी है ।
डूबता दरिया अपने ही आप से ,
समंदर ही जिसकी निशानी है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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