रविवार, 17 जून 2018

पिता

देता रहा जो छाँव उम्र  सारी ।
सहता रहा जो धूप खुद सारी ।

वो अपनी साँझ के झुरमुट में सुस्ता रहा है ।
फिर भी वो देखो कितना मुस्कुरा रहा है ।

बांटकर जीवन जीवन थमता जा रहा है ।
नियति के आँचल में प्यासा ही जा रहा है ।

पीकर दर्द के आँसू पिता मुस्कुरा रहा है ।
आज फिर समय समय को दोहरा रहा है ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
Blog post 17/6/18

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