शनिवार, 23 जून 2018

चाहत


एक इतनी सी दिल की चाहत है ।
निगाहों को निगाहों की आहट है ।

 होंसले टूटते नही समंदर के ,
साहिल को भिंगोने की आदत है ।

तर होती जमीं शबनम से ,
चाँद की कैसी शरारत है ।

हो मंजिल निग़ाह में सामने ,
 रास्ते नही फिर रुकावट है ।

करता सज़दा फ़र्ज़ जान कर ,
मंजूरियत ख़ुदा की चाहत है ।

है नियत बस इतनी सी ,
के नही कोई बदनीयत है ।

नही कोई और दौलत मेरी ,
मेरी बस एक यही दौलत है ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@

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