एक इतनी सी दिल की चाहत है ।
निगाहों को निगाहों की आहट है ।
होंसले टूटते नही समंदर के ,
साहिल को भिंगोने की आदत है ।
तर होती जमीं शबनम से ,
चाँद की कैसी शरारत है ।
हो मंजिल निग़ाह में सामने ,
रास्ते नही फिर रुकावट है ।
करता सज़दा फ़र्ज़ जान कर ,
मंजूरियत ख़ुदा की चाहत है ।
है नियत बस इतनी सी ,
के नही कोई बदनीयत है ।
नही कोई और दौलत मेरी ,
मेरी बस एक यही दौलत है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@
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