शनिवार, 23 जून 2018

एकाकी चलता

वो आता उषा के संग ,
 किरण आसरा पाता ।
 संध्या के संग हर दिन ,
 दिनकर क्यों छुप जाता ।

 तजकर पहर पहर सबको ,
 वो एकाकी चलता जाता ।
 हर प्रभात का दिनकर ,
 संध्या दामन ढल जाता ।
 .... विवेक दुबे"निश्चल"@...

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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