कहने को तो साल बदला है ।
नही कहीं कोई हाल बदला है।
है सूरज आज भी कल जैसा ,
नही भोर का उजाल बदला है ।
चल रहा है सब कुछ बेसा ही,
न कोई दिल मलाल बदला है ।
चल रही है परेशां ज़िंदगी सुकूँ से,
नही कही कोई बे-हाल बदला है ।
चलते चलो आज भी सफर पर,
उम्मीद ने न ये निहाल बदला है ।
आयेगा उजाला स्याह काट कर,
न "निश्चल" ने ये ख़्याल बदला है ।
....विवेक"निश्चल"@..
9/1/21
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें