हर ज़वाब का जबाब देता गया ।
हर ख़्याल को ख्वाब देता गया ।
मैं चाहत-ऐ-जिंदगी की खातिर ,
मैं हसरतों को रुआब देता गया ।
इस जिंदगी के सफर में मुझे ,
हर मोड़ एक दोहराब देता गया ।
चलता रहा मैं मुसलसल राह पे,
रास्ता मगर मुझे ठहराब देता गया।
वो लफ्ज़ थे कुछ तल्ख़ लहजे में,
हर अल्फ़ाज़ मगर लुआब देता गया ।
देखकर आलम बेहयाई का जमाने मे,
"निश्चल"निगाहों को नक़ाब देता गया ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@..
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