अब नही रंजिशों से मलाल कोई ।
अब नही ख़्वाब-ओ-ख़्याल कोई ।
थी जुस्तजू अरमानों से चाहतों की ,
पर मिली नही मुझ सी मिशाल कोई ।
रूठ कर निगाहों में अपनों की ही ,
करता नही कभी भी कमाल कोई ।
जब चलना हो साथ ज़िंदगी के ही ,
तब क्यो कहे जिंदगी को बेहाल कोई ।
जब न हों मुरादें कुछ पा जाने की ,
तब "निश्चल"क्यो न रहे निहाल कोई ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 7
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