शनिवार, 9 जनवरी 2021

अश्क़ बहाये न गये ।

 आँखों में भरे अश्क़ बहाये न गये ।

रूठ कर आज अपने मनाये न गये ।


कह गये बात तल्ख़ लहज़े में वो ,

नर्म अल्फ़ाज़ जुवां पे सजाये न गये ।


 उठाते रहे हर नाज़ बड़े सलीक़े से ,

अहसास फ़र्ज़ कभी दिलाये न गये ।


हो गये गैर अपने गैर की ख़ातिर ,

अपने कभी मग़र भुलाये न गये ।


 सह गये हर चोट बड़े अदब से हम ,

ज़ख्म "निश्चल" कभी दिखाये न गये ।

...."निश्चल"@.

डायरी 7

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