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बार बार प्रतिकार मिला है ।
अपनो से ये उपहार मिला है ।
संघर्षित इस जीवन पथ पर ,
पारितोषित बस हार मिला है ।
स्वार्थ भरे रिश्ते नातों में ,
कुटिल नयन दुलार मिला है ।
अपनो से अपनो के संवादों में,
शब्द शब्द व्यापार मिला है ।
हर कांक्षित आकांक्षा में ,
अस्वीकारित स्वीकार मिला है ।
पार चला जब मजधारो के ,
तब तट पर इस पार मिला है ।
बार बार प्रतिकार मिला है ।
अपनो से ये उपहार मिला है ।
...विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 7
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