बुधवार, 7 सितंबर 2022

जीवन नही सरल है

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जीवन नही कही सरल है ।

चलना ही जिसका हल है ।

घटता कुछ व्योम अंतरिक्ष में भी,

सागर तल में भी होती हलचल है ।

घूम रही है ,वसुंधरा धूरी पर ,

परिपथ में,जाने कैसा बल है ।

आई रजनी दिनकर के जाते ही,

चंदा सँग तारों की झिलमिल है ।

नव प्रभात की ,आशा में ,

रजनी से भी, होता छल है ।

बदल रहे है दिन, दिन से ही ,

यूँ होता, हर दिन का कल है ।

जीवन नही कही सरल है ।

चलना ही जिसका हल है ।

  ....."निश्चल"@..

डायरी 7


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