शनिवार, 10 सितंबर 2022

यक्ष प्रश्न

1044

जो गरल हलाहल तप्त भरा है ।

एक रत्न जड़ित स्वर्ण घड़ा है ।


होश निग़ाहों से दुनियाँ  देखो ,

हर होश यहाँ मदहोश पड़ा है ।

 

रिंद सरीखे झूमें सब साक़ी सँग ,

फिर भी मैखाने में मौन बड़ा है ।


फूल चमन में खूब खिले देखो ,

अंग अंग पर रंग,बे-रंग चढ़ा है ।


गले मिलें सब आँख मींचकर ,

साँस जात पात का बैर मढ़ा है ।


अपनो की अपनी दुनियाँ में ,

अपनों से ही हर कोई लड़ा है ।


ख़ामोश सभी सम्मुख जिसके ,

"निश्चल" एक यक्ष प्रश्न धरा है ।

..... विवेक दुबे"निश्चल"@..

डायरी 7

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