बुधवार, 7 सितंबर 2022

दर्या

 

1
जितना तू बे-ज़िक्र रहेगा ।
उतना तू बे-फ़िक्र रहेगा ।

चल छोड़ दे फिक्रें कल की ।
न छीन खुशियाँ इस पल की ।

न कर रश्क़ अपने रंज-ओ-मलाल से ।
कर तर खुदी को ख़ुशी के गुलाल से ।

दर्या हूँ वह जाऊँगा समंदर की चाह में ।
मिलेगा बजूद मेरा कही किसी निगाह में ।
.....
सहारे गर्दिश-ऐ-फ़रियाद में ,
रिश्तों की बुनियाद हुआ करते हैं ।
....विवेक दुबे निश्चल"@..
2
मिरी याद में जो रवानी मिलेगी।
  उसी आह को वो कहानी मिलेगी ।

मिली रूह जो ख़ाक के उन बुतों से ,
जिंदगी जिस्मों को दिवानी मिलेगी ।

मुझे भी मिला है जिक्र का सिला यूँ ,
नज़्मों में मिरि भी कहानी मिलेगी ।

  जहाँ राह राही मुसलसल चलेगा ,
  जमीं पे कही तो निशानी मिलेगी ।

  बहेगा तु हालात के दर्या में ही ,
   नही मौज सारी सुहानी मिलेगी ।

  सजाता रहा मैं जिसे ख़्वाब में ही ,
   उम्र वो किताबे पुरानी मिलेगी ।

   कहेगा जिसे तू निगाहे जुबानी,
  "निश्चल" वो नज़्र भी सयानी मिलेगी ।
   
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(146)
2
सँभाले से सँभलते नहीं हैं हालात कुछ ।
बदलते से रहे रात हसीं ख़्यालात कुछ ।

होता गया बयां ,हाल सूरत-ऐ-हाल से ,
होते रहे उज़ागर, उम्र के असरात कुछ ।

बह गया दर्या ,  वक़्त का ही वक़्त से ,
करते रहे किनारे, ज़ज्ब मुलाक़ात कुछ ।

थम गया दरियाब भी, चलते चलते ,
ज़ज्ब कर , उम्र के मसलात कुछ ।

"निश्चल" रह गये ख़ामोश, जो किनारे ,
झरते रहे निग़ाहों से ,  मलालात कुछ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(140)
3
जाने कैसी यह तिश्नगी है ।
अंधेरों में बिखरी रोशनी है ।

मचलता है चाँद वो फ़लक पे ,
बिखरती जमीं ये चाँदनी है ।

डूबता नहीं सितारा वो छोर का ,(उफ़्क)
मिलती जहाँ फ़लक से जमी है

सिमटा आगोश में दर्या समंदर के ,
जहाँ आब की नही कहीं कमी है ।

खिलता है वो बहार की ख़ातिर ,
बिखरती फूल पे शबनम नमी है ।

   चैन है नही मौजूद-ओ-मयस्सर ,
"निश्चल"मगर मुसलसल ये जिंदगी है ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@.....

तिश्नगी/प्यास/तृष्णा /लालसा
डायरी 6(147)
4
भुलाए भूली , नही जाती वो रात ।
जेठ की तपिश ,चाँदनी का साथ ।

थी बड़ी हसीं वो ,पहली मुलाकात ।
ज़िस्म जुदा,लेकर रूहों को पास ।

दमकती बूंदे ,थरथराते लब पर ,
झिलमिल सितारों सा, अहसास ।

बहता सा दर्या , ज़ज्बात का ,
किनारों पे, बुझती नही प्यास ।

सिमेट कर , खुद में ही खुद को ,
  साथ डूब जाने को,   बेकरार ।

डूबता रहा,  न रहा बजूद कोई ,
उभरने की ,  न रही कोई आस ।

ज़ज्ब हुआ , समंदर में दर्या सा,
न रहा दर्या का,  कोई आभास ।

भुलाए भूली,  नही जाती वो रात ।
जेठ की तपिश ,चाँदनी का साथ ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(150)
5
ये फूल गुलाब से ।
नर्म सुर्ख रुआब से ।

नादानियाँ निग़ाहों की ,
नजर आतीं नक़ाब से ।

कशमकश एक उम्र की ,
उम्र पे पड़े पड़ाव से ।

गुजरते रहे वाबस्ता ,
राहों के दोहराव से ।

थमता दर्या हसरत का ,
"निश्चल" बहता ठहराब से ।
...विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6(155)
6
हादसे ये हालात के,अश्क पलकों पे उतरने नहीं देते ।
टूटकर हालात-ऐ-हक़ीक़त,ज़मीं पे बिखरने नहीं देते ।
हुआ है ख़ुश्क अब तो, मुसलसल आँख का  दर्या भी ,
ये कोर पलकों पे ,अब मौजों को ठहरने नहीं देते ।
7
रूबरू ज़िंदगी ,घूमती रही ।
रूह की तिश्नगी, ढूँढती रही ।
रहा सफ़र दर्या का, दर्या तक,
मौज साहिल को ,चूमती रही ।
8
कुछ यूँ सूरत-ऐ-हाल से रहे ।
कुछ उम्र के ही ख़्याल से रहे।
ख़ामोश न थे किनारे दर्या के ,
मगर नज़्र के मलाल से रहे।
......
9
मिटते रहे निशां निशानों से ।
बहते रहे दर्या अरमानों से ।
रुत बदलते ही रहे मौसम ,
लाते रहे बहारें दीवानों से ।
10
कुछ फैसले कुदरत के ।
मोहताज़ रहे शोहरत के ।
बहता रहा दर्या वक़्त का,
ग़ुम हुये पल मोहलत के ।
11
हर नया कल आज सा रहा  ।
ख़याल गुंजाइशें तलाशता रहा ।
डूबती उबरती कश्ती हसरतों की ,
दर्या-ए-सफ़र साहिल राबता रहा ।
..
12
मिलता ही रहा दर्या को ,
साथ किनारे का हरदम ।
छोड़ बहता ही चला दर्या ,
हाथ किनारे का हरदम ।
..
13
पाले जो ख्वाब छोड़ चल जरा ।
रुख हवाओं सा मोड़ चल जरा ।
बहता है दर्या किनारे छोड़कर ,
नाता साहिल से तोड़ चल जरा ।
14
751
ये बेचैन है मन ,और खामोश निगाहें ।
सांसों की सरगम पे, सिसकती हैं आहें ।

कैसे रहे कब तलक, कोई जिस्म जिंदा ,
मिलती नहीं अब ,जब जमाने से दुआएं ।

चला था सफर ,हसरतों को सिमटे हुए ,
चाहतों के दर्या ,सामने डुबाने को आयें ।

हो गई कातिल मेरी , वफाएं ही मेरी ,
न आ सके काम,जो अरमा थे लुटाए ।

बेचैन रहा खातिर, जिसके हर घड़ी जो,
"निश्चल" वो दर्द दिल,  किसको दिखाएं ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6
Blog post 30/10/19
15
ग़म के दर्या में रंग खुशी का मिलाया जाये ।
क्युँ न इंसान को इंसान से मिलाया जाये ।
दूर हो जाये अदावत तब कोई बात बने ,
क्युँ न सभी को अब अपना बनाया जाये ।
एक टीस है दिलों में के मिटती ही नही ,
क्युँ न प्यार का अब मरहम लगाया जाये ।
....."निश्चल"@..
डायरी 7
Blog post 10/2/21
16
रुख हवा के साथ चला चल ।
खुद फ़िज़ा से हाथ मिला चल ।
बहकर सँग दर्या की धार में ,
जीत ज़ज्बात को दिला चल ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
17
764 ग़ज़ल

122-122-122-122

बहारों ने तुझको पुकारा भी होगा ।
मिलाने निग़ाहें संवारा भी होगा ।

झुकाकर निग़ाहें बड़ी ही अदा से ,
इशारों में दिल को हारा भी होगा ।

चढ़ा इश्क़ परवाज़ राहे ख़ुदा में ।
हुस्न आइने में उतारा भी होगा ।

चला हूँ डगर पे तुझे साथ ले के ,
कहीं तो मुक़द्दर पुकारा भी होगा ।

नही है सफर पे मुसाफ़िर अकेला,
मुक़ा मंजिल पे इक हमारा भी होगा ।

रहेंगे जहाँ पे सफर में अकेले ,
वहाँ पे दुआ का सहारा भी होगा ।

बहा है सदा साथ "निश्चल" दर्या के ,
कही तो युं मेरा किनारा भी होगा ।

     ....विवेक दुबे"निश्चल"@...
Blog post 4/2/20
डायरी 7

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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