पानी (जल दिवस)
जिसका अपना कोई बजूद नहीं ।
पानी बिन कोई पर परिपूर्ण नहीं ।
किया गर्म भाप बन उड़ गया ।
किया ठंडा वर्फ में बदल गया ।
जैसा चाहो वैसा ढालो ,
सब में तैयार ।
नहीं कोई इंकार ,
न कोई अहंकार ।
साथ रहने को तैयार ,
दूर जाने से नही इंकार।
मिलाओ मिल गया ,
गर्म करो उड़ गया ।
कुछ ऐसा ही हो
मानव मन का श्रृंगार ।
......विवेक दुबे"निश्चल"@....
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