ओ पुरुष ......
तूने कभी सोचा कौन है तू ?
किस के द्वारा लाया गया ?
किस बजह से तू कहलाया पुरुष
तो सुन आज सत्य को जान जरा
तू भी उसी का अंश है ,
तू उसी से दुनिया में आया है ।
तू उसी की बजह से ,
पुरुष कहलाया है ।
जिसको आज तू ,
दुनिया में आने से पहले ,
गर्भ में ही दफ़न करने तुला है ।
शायद इस डर से ....
तेरे जन्मते ही मेरी नजरे झुक जाएँगी ,
कही कोई सड़क चलता भेड़िया ,
शिकार न बना ले इसको ।
या कोई लालची दानव ,
आग के हवाले न कर दे इसको ।
या फिर कही कोई रहा चलते ,
तेजाब न छिड़क दे इस पर ।
पर कभी सोचा तूने ?
यह सब करता कौन है ?
ओ पुरुष तू बस तू ,
और कोई नाही ।
कुछ इस तरह से नष्ट की ,
कुछ उस तरह से तूने ।
अब बोल तू बचा सकेगा ,
अपने अस्तित्व को ,
आने बाले कल के लिए ।
.....विवेक दुबे" निश्चल"@...
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