आया बसंत ...
बिखरा बसंत...
छाया बसंत....
झूम उठी हर डाली डाली...
खिल उठी कलि कलि से ..
सूनी प्यासी डाली डाली ....
भवरों पर योवन छाया. .
फूलो के मदमाते पराग ने बोराया ....
पा कर सुगंध.
हुआ मदमंद....
घूमे डाली डाली .. .
आतुर मिलने को जिस से...
हर कलि...
जो बस अब है खिलने ही बाली ...
धरा हो गई फिर से नव योवना ...
पहनी है केसरिया साड़ी....
सरसों फूली टेसू फूले
फूल रही है डाली डाली
स्वागत को आतुर हो जेसे
अपने सजन के.. .
नई दुल्हन प्यारी प्यारी.....
शुभ बसंत के पर्व पर
आओ हम सब फूलो से ही खिल जाये
भूल सारे दुःख दर्दो को
भवरो सा गुनगुनाये....
खिल कर फूलो से
महके और महकाए
सभी मित्रो को
वसंत उत्सव की बसंती कामनाओ सहित
सादर समर्पित ......
.......विवेक.....
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