सोमवार, 11 मई 2015

स्त्री

स्त्री

शक्ति स्वरूपा ,  
लक्ष्मी रूपा ।
विद्या दयनी , 
रिद्धि सिद्धि प्रदायनी ।
गौरी बन रचा गणेश  ,
सृजन किया अनुपम सृष्टि का ,
मैं ही सृष्टि दिया सन्देश ।

आकांक्षाएँ अभिलाषाएँ तुम ही से ।
 स्त्री तुम ही हो सृष्टि का आधार ।

 देती हो हर दम देती ही रहती हो,
करती नहीं कभी इंकार ।

जब जब पाप बड़े धरती पर ,
मची हाहाकार ।

तब रूप धरा चंडी का ,
दुष्टों का किया संहार ।

सीता बन राह बनी रघुवर की ,
रावण का हुआ संहार ।

पांचाली बन अहसास कराया ,
स्त्री नहीं है व्यापार।

नष्ट हुआ कुरु बंश ,
जिसने किया नहीं स्त्री का मान ।

तब हो या हो अब ,
तब तब खुशियाँ छाई ,
जब जब तुम्हे मान मिला ।


तब तब जग अंधियारी छाई ,
जब जब अपमान मिला ।

   ओ स्त्री तुम ने ,  बस तुम ने ही ।
   भाव समर्पण से ,यह सृष्टि रचाई ।

  ....विवेक दुबे "निश्चल"@...


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