कवि एक ऐसा प्राणी ...
जिसको नहीं कोई दूजा काम
यह तो बस होता हे बेलाम ....
जब तक मर्जी सीधा सरपट भागे
जब मन हो तिरछी तिरपट चाल दिखावे
पता नहीं कब दुडकी मारे
जिसकी चाहे उसकी टांगे खिचे
न जाने कब किसको
लपेट लपेट के मारे
ऊँच नीच का भेद मिटावे
भाषा धर्म के दूर करे अंधियारे
नेता और अफसर शाही
सब पर इसने धाक जमाई
हर मुश्किल में यह सामने आया
दुनिया को सच का आईना दिखाया
सबसे पहले यही बोला
ईस्वर अल्लाह जीजस मोला
ओ मानब
क्यों तूने उसको स्वार्थ पर तोला
चलते सदा इसके
व्यंगो के बाण
सत्य की क़टार से
हिम्मत की तलवार से
करता यह बड़े बड़े काम
नहीं कभी इसे विश्राम
फिर भी सब कहते
ओ रे कवि
तुझे नहीं कोई काम .......
.......विवेक....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें