सोमवार, 11 मई 2015

ओ माँ


कभी कुछ भी तो न किया
माँ तू ने खुद
अपने बास्ते
जो भी किया बस
मेरे बास्ते
तू ने आसान किये
मेरे हर रास्ते
मेरे गम की परछाई भी
तुझ से घबराई
तू ने अपनी हर ख़ुशी
मुझ पर लुटाई
छोटी सी खरोच भी देख
अपने सारे दर्द भूल गई
मेरी नींद की खातिर
तू सोना भूल गई
मेरे माथे पर बो काजल से चाँद बनाना
लाल सूखी मिर्चो को
आग में जलना
फिर सीने से लगाना
.....विवेक....

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...