शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

एक साध निशाना ऐसा

मंजिल से पहले घबराना कैसा ।
 बीच राह तेरा थक जाना कैसा ।
 भेद सका न हो अब तक कोई,
 एक साध निशाना तू बस ऐसा । 
 .... विवेक दुबे "निश्चल"°©..

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