सोमवार, 5 फ़रवरी 2018

"निश्चल" निडर बाल मन

 निश्चल निडर बाल मन 
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माँ मुझको भी संगीन लान दे ,
 मैं भी सीमा पर लड़ने जाऊँ ।

 वीरो के सँग ताल मिलाकर ।
 दुश्मन को ख़ाक मिलाऊँ ।
 ले ले तू खिलौने सारे मेरे ।
 इनसे अब मन भरता मेरा ।
 बस एक बंदूक लान दे तू ,
 मार शत्रु को मन बहलाऊँ ।
      माँ मुझको भी  .....

 बरसेंगी गोली मेरे हाथों से भी,
 बेटा तेरा तनिक नही घबराऊँ ।
 उठा तिरँगा अपने हाथों में ,
 दुश्मन के द्वार लगा आऊँ ।
 करता जो वार बार बार हम पर,
 मैं उसकी आँख से आँख लड़ाऊँ
     माँ मुझको भी  ....

  बारूद दागूंगा मैं भी भर कर ,
  दुश्मन का नाम मिटा आऊँ ।
  शीश काट कर माँ मैं शत्रु का ,
  तेरे कदमों की ठोकर लाऊँ ।
  अपनी भारत माता की खातिर,
  मैं भी सीमा पर लड़ने जाऊँ ।
      माँ मुझको भी ...

 तू ही तो कहती है माँ मुझसे ,
 राष्ट्र धर्म से बड़ा नही कोई ।
 द्वार खड़ा है दुश्मन अपने,
 मैं भी राष्ट्र धर्म निभा आऊँ ।
 माँ तेरा ही तो बेटा हूँ  मैं ,
 "निश्चल" निडर रहा हूँ मैं ।
  घुसकर दुश्मन के घर में,
 दुश्मन को धूल मिला आऊँ।

 माँ मुझको भी संगीन लान दे,
 मैं भी सीमा पर लड़ने जाऊँ ।
       .... विवेक दुबे "निश्चल"©...
            5/2/18







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