गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

महिला शक्ति

 वो एक अकेली नारी थी ।
 पड़ती सौ सौ पर भारी थी ।
 कूट नीति की चालों में ,
 नही कोई उस सी सानी थी ।
       स्वतंत्रा के संग्राम की,
       वो बानर सैनानी थी ।
 सो गए शास्त्री अचानक,
 राष्ट्र बिपत्ति बड़ी भारी थी ।
  राष्ट्र भार ले  कांधो पर ,
 चलने की नारी ने ठानी थी ।
        आँख दिखाई दुश्मन ने ,
       उसने अबला मानी थी ।
 धर लिया रूप धरा पर ,
 इंद्रा ने तब चंडी का ।
 अब उस की बारी थी ,
  प्रतिकार किया शत्रु का ।
          उसने तो बस शत्रु के ,
         टुकड़े करने की ठानी थी ।
  करा समर्पण शत्रु का,
  बिश्व इतिहास रचा ।
  शत्रु सेना घुटनो चलवाई थी ।
  तोड़ दिया नापाक पाक को,
  मुजीब को बंगला दिलवाई थी ।
     आँक रहा था बिश्व कमजोर हमे,
     रातों रात तब उस नारी ने ,
     पोखरण परमाणु गूँज सुनाई थी । 
     उसके अदम्य साहस बल ने,
     सम्पूर्ण जगत धाक जमाई थी । 
 कर प्राण निछावर राष्ट्र हित मे,
 सीने आपनो की गोली खाई थी ।
 छा गई बिश्व पटल पर शक्ति बन,
 अबला नारी देवी इंद्रा कहलाई थी ।
 ..... विवेक दुबे © "निश्चल"...

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...