वो एक अकेली नारी थी ।
पड़ती सौ सौ पर भारी थी ।
कूट नीति की चालों में ,
नही कोई उस सी सानी थी ।
स्वतंत्रा के संग्राम की,
वो बानर सैनानी थी ।
सो गए शास्त्री अचानक,
राष्ट्र बिपत्ति बड़ी भारी थी ।
राष्ट्र भार ले कांधो पर ,
चलने की नारी ने ठानी थी ।
आँख दिखाई दुश्मन ने ,
उसने अबला मानी थी ।
धर लिया रूप धरा पर ,
इंद्रा ने तब चंडी का ।
अब उस की बारी थी ,
प्रतिकार किया शत्रु का ।
उसने तो बस शत्रु के ,
टुकड़े करने की ठानी थी ।
करा समर्पण शत्रु का,
बिश्व इतिहास रचा ।
शत्रु सेना घुटनो चलवाई थी ।
तोड़ दिया नापाक पाक को,
मुजीब को बंगला दिलवाई थी ।
आँक रहा था बिश्व कमजोर हमे,
रातों रात तब उस नारी ने ,
पोखरण परमाणु गूँज सुनाई थी ।
उसके अदम्य साहस बल ने,
सम्पूर्ण जगत धाक जमाई थी ।
कर प्राण निछावर राष्ट्र हित मे,
सीने आपनो की गोली खाई थी ।
छा गई बिश्व पटल पर शक्ति बन,
अबला नारी देवी इंद्रा कहलाई थी ।
..... विवेक दुबे © "निश्चल"...
पड़ती सौ सौ पर भारी थी ।
कूट नीति की चालों में ,
नही कोई उस सी सानी थी ।
स्वतंत्रा के संग्राम की,
वो बानर सैनानी थी ।
सो गए शास्त्री अचानक,
राष्ट्र बिपत्ति बड़ी भारी थी ।
राष्ट्र भार ले कांधो पर ,
चलने की नारी ने ठानी थी ।
आँख दिखाई दुश्मन ने ,
उसने अबला मानी थी ।
धर लिया रूप धरा पर ,
इंद्रा ने तब चंडी का ।
अब उस की बारी थी ,
प्रतिकार किया शत्रु का ।
उसने तो बस शत्रु के ,
टुकड़े करने की ठानी थी ।
करा समर्पण शत्रु का,
बिश्व इतिहास रचा ।
शत्रु सेना घुटनो चलवाई थी ।
तोड़ दिया नापाक पाक को,
मुजीब को बंगला दिलवाई थी ।
आँक रहा था बिश्व कमजोर हमे,
रातों रात तब उस नारी ने ,
पोखरण परमाणु गूँज सुनाई थी ।
उसके अदम्य साहस बल ने,
सम्पूर्ण जगत धाक जमाई थी ।
कर प्राण निछावर राष्ट्र हित मे,
सीने आपनो की गोली खाई थी ।
छा गई बिश्व पटल पर शक्ति बन,
अबला नारी देवी इंद्रा कहलाई थी ।
..... विवेक दुबे © "निश्चल"...
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