यूँ मूक बने बेठे रहने से हम ,
फिर परतंत्र न हो जाये यारों ।
हम भी दायित्व निभाएँ यारों ,
मातृभूमि का क़र्ज़ चुकाएँ यारों ।
सीमा पे न लड़ सकें कोई बात नही ,
खुद को कुछ तो फ़ौलाद बनाएं यारों ।
खा रहे है रोटी भारत माँ की ,
भेद रहे गोदी भारत माँ की ।
आते ही आस पास नज़र कहीं ,
मिलकर इनके सारे भेद उठाएं ।
समाज में छुपे हुए इन गद्दारों को ,
मिलकर हम सबक सिखाएँ यारों ।
इन जयचंदों को धूल चटाएं यारों ,
आओ अपना दायित्व निभाएँ यारों ।
मातृभूमि से बड़ा कोई दायित्व नही ,
कार्य बड़ा कड़ा है पर कठिन नही ।
चलकर अपने दायित्व मार्ग पर ,
राष्ट्र भक्त स्वच्छ समाज बनाएं यारों ।
हम कुछ अपना दायित्व निभाएँ यारों ।
मातृभूमि का कुछ क़र्ज़ चुकाएँ यारों ।
.... विवेक दुबे *"निश्चल"*
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