गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

दायित्व हमारे


यूँ मूक बने बेठे रहने से हम ,
फिर परतंत्र न हो जाये यारों ।
      हम भी दायित्व निभाएँ यारों ,
      मातृभूमि का क़र्ज़ चुकाएँ यारों ।
सीमा पे न लड़ सकें कोई बात नही ,
 खुद को कुछ तो फ़ौलाद बनाएं यारों ।
        खा रहे है रोटी भारत माँ की ,
        भेद रहे गोदी भारत माँ की ।
  आते ही आस पास नज़र कहीं ,
  मिलकर इनके सारे भेद उठाएं ।
       समाज में छुपे हुए इन गद्दारों को ,
       मिलकर हम सबक सिखाएँ यारों ।
 इन जयचंदों को धूल चटाएं यारों ,
आओ अपना दायित्व निभाएँ यारों ।
    मातृभूमि से बड़ा कोई दायित्व नही ,
    कार्य बड़ा कड़ा है पर कठिन नही ।
     चलकर अपने दायित्व मार्ग पर ,
  राष्ट्र भक्त स्वच्छ समाज बनाएं यारों ।
 हम कुछ अपना दायित्व निभाएँ यारों ।
 मातृभूमि का कुछ क़र्ज़ चुकाएँ यारों ।
  
         .... विवेक दुबे  *"निश्चल"* 

  

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