सोमवार, 5 फ़रवरी 2018

कर्म

आंत हीन इन अंतो से ।
 लगते खुलते फन्दों से।
 फँसते पंक्षी उड़ते पंक्षी ,
 अपने अपने कर्मो से ।
.... विवेक दुबे "निश्चल"...

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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