341
खोजता हर शख्स कुछ न कुछ ,
दुनियाँ की निगाहों में ।
यूँ गिरता हर शख्स खुद-वा-खुद ,
खुद की निगाहों में ।
...
342
उम्र घटती गई और,
कुछ तजुर्बे बढ़ते गए ।
तलाश-ऐ-जिंदगी में ,
जिंदगी से गुजरते गए ।
.... ..
343
भाव उभरते है ।
अर्थ संवरते है ।
सज हृदय पीड़ा से ,
शब्द लिपटते हैं ।
......
344
जीवन मे विश्रांति कैसी ।
कदम कदम भ्रांति कैसी ।
डूब चलें मन के भावों में ,
तब अर्थो की संक्रांति कैसी ।
....
मोहब्बत में बिका न खरीदा गया ।
दीवानगी का इतना सलीका रहा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@ .
Blog post 13/5/18
खोजता हर शख्स कुछ न कुछ ,
दुनियाँ की निगाहों में ।
यूँ गिरता हर शख्स खुद-वा-खुद ,
खुद की निगाहों में ।
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342
उम्र घटती गई और,
कुछ तजुर्बे बढ़ते गए ।
तलाश-ऐ-जिंदगी में ,
जिंदगी से गुजरते गए ।
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343
भाव उभरते है ।
अर्थ संवरते है ।
सज हृदय पीड़ा से ,
शब्द लिपटते हैं ।
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जीवन मे विश्रांति कैसी ।
कदम कदम भ्रांति कैसी ।
डूब चलें मन के भावों में ,
तब अर्थो की संक्रांति कैसी ।
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मोहब्बत में बिका न खरीदा गया ।
दीवानगी का इतना सलीका रहा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@ .
Blog post 13/5/18
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