रविवार, 13 मई 2018

वक़्त के पहरे से

कुछ पल ठहरे से ।
 यादों के घेरे से  ।

 कदमों की आहट पे ,
 वक़्त के पहरे से ।

 रीत रही है रिक्त निशा ,
 भोर तले धुंधले चेहरे से ।

 लुप्त हुए अंबर से टूटे तारे  ,
  पहले धरती को छू लेने से ।

  उदित हुआ रवि शीतल फिर ,
  गगन पथ तपने के पहले से ।

 ऋतु राज के जाते ही ,
 अविनि करवट बदले होले से । 

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...