यूँ जरूरी तो कुछ भी नहीं ,
दुनियाँ में दुनियाँ के वास्ते ।
फिर भी मिलते हैं मगर ,
अक्सर चौराहों पे रास्ते ।
टूटकर मौजें साहिल पर ,
खोजती समंदर ही में रास्ते ।
रिस्ता रहा घड़े की मानिंद वो ,
आया न कोई प्यास को तलाशते ।
लो बुझ गया दिया भी वो ,
जो जला था सुबह के वास्ते ।
बिखेरता था खुशबू गुलशन में जो ,
लो टूट गया एक ज़ुल्फ़ के वास्ते ।
यूँ जरूरी तो नही .....
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 4
दुनियाँ में दुनियाँ के वास्ते ।
फिर भी मिलते हैं मगर ,
अक्सर चौराहों पे रास्ते ।
टूटकर मौजें साहिल पर ,
खोजती समंदर ही में रास्ते ।
रिस्ता रहा घड़े की मानिंद वो ,
आया न कोई प्यास को तलाशते ।
लो बुझ गया दिया भी वो ,
जो जला था सुबह के वास्ते ।
बिखेरता था खुशबू गुलशन में जो ,
लो टूट गया एक ज़ुल्फ़ के वास्ते ।
यूँ जरूरी तो नही .....
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 4
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