रविवार, 13 मई 2018

मुक्तक 355से 358

  355
शब्दो के सफ़र में
 हम सब मुसाफ़िर है ।
 तलाश है मंजिल की ,
 जिंदगी गुजरी जाती है ।
.... 
356
न समझ सका मैं ,
वक़्त के मिज़ाज को ।
 एक कल की ख़ातिर,
 मैं भूलता आज को ।
..... 
357
नींव बना पत्थर जो ।
 बोझ तले दबा वो ।
 लुप्त हुआ धरा तले ,
 अपने आँसू पीता वो ।
...
358
  एक दुआ की खातिर,
  टूटता सितारों सा ।
  कुछ यादों की खातिर,
  मैं अधूरे वादों सा ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@..

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