355
शब्दो के सफ़र में
हम सब मुसाफ़िर है ।
तलाश है मंजिल की ,
जिंदगी गुजरी जाती है ।
....
356
न समझ सका मैं ,
वक़्त के मिज़ाज को ।
एक कल की ख़ातिर,
मैं भूलता आज को ।
.....
357
नींव बना पत्थर जो ।
बोझ तले दबा वो ।
लुप्त हुआ धरा तले ,
अपने आँसू पीता वो ।
...
358
एक दुआ की खातिर,
टूटता सितारों सा ।
कुछ यादों की खातिर,
मैं अधूरे वादों सा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
शब्दो के सफ़र में
हम सब मुसाफ़िर है ।
तलाश है मंजिल की ,
जिंदगी गुजरी जाती है ।
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356
न समझ सका मैं ,
वक़्त के मिज़ाज को ।
एक कल की ख़ातिर,
मैं भूलता आज को ।
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357
नींव बना पत्थर जो ।
बोझ तले दबा वो ।
लुप्त हुआ धरा तले ,
अपने आँसू पीता वो ।
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358
एक दुआ की खातिर,
टूटता सितारों सा ।
कुछ यादों की खातिर,
मैं अधूरे वादों सा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
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