खोकर अपने ख़्याल सारे ,
बस एक ख़्याल पाला है।
हर वक़्त हाथ में उसके ,
औलाद के लिए निवाला है ।
रूठता जो कोई क़तरा ,
जिगर का कभी उससे ।
निगाहों ने उसकी ,
तब समंदर उछाला है ।
क़तरे जिगर अनमोल उसके ,
हर क़तरे को उसने सम्हाला है ।
नही जिसे फ़िक़्र अपनी एक पल की ,
बड़ी फ़िक़्र से उसने हमे सम्हाला है ।
है वो खेर ख़्वाह सबकी ,
खुदा ने जिसे जमीं उतारा है ।
रिश्तों ने नाम दिया माँ जिसको ,
मैंने तो उसमें अपना खुदा निहारा है ।
साथ रहती दुआओं में हर पल जो ,
उसकी रहमत ने हर बला से उबारा है ।
...... विवेक दुबे"निश्चल"@...
बस एक ख़्याल पाला है।
हर वक़्त हाथ में उसके ,
औलाद के लिए निवाला है ।
रूठता जो कोई क़तरा ,
जिगर का कभी उससे ।
निगाहों ने उसकी ,
तब समंदर उछाला है ।
क़तरे जिगर अनमोल उसके ,
हर क़तरे को उसने सम्हाला है ।
नही जिसे फ़िक़्र अपनी एक पल की ,
बड़ी फ़िक़्र से उसने हमे सम्हाला है ।
है वो खेर ख़्वाह सबकी ,
खुदा ने जिसे जमीं उतारा है ।
रिश्तों ने नाम दिया माँ जिसको ,
मैंने तो उसमें अपना खुदा निहारा है ।
साथ रहती दुआओं में हर पल जो ,
उसकी रहमत ने हर बला से उबारा है ।
...... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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