शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

बिंदु सिंधु होता सा

  बिंदु सिंधु होता सा ।
  सिंधु जल खोता सा ।

 टूटें बूंद बूंद बादल से ,
 नीर नीर धरा बोता सा ।
  
बिंदु सिंधु होता सा ।
  सिंधु जल खोता सा ।

 निशि श्यामल आँचल में ,
 विधु निहार पिरोता सा ।

बिंदु सिंधु होता सा ।
  सिंधु जल खोता सा ।

 छुपकर दिनकर में  ,
 ताप लगे सलोना सा ।

बिंदु सिंधु होता सा ।
  सिंधु जल खोता सा ।

"निश्चल" रहे नहीं कोई ,
 समय समय खिलोना सा ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 5(537)

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