आओ कान्हा,
दया दिखाओ कान्हा ।
छाओ चित में,
मोहे न बिसराओ कान्हा ।
करुण पुकार सुनो मेरी,
तुम कृपा बरसाओ कान्हा ।
हार रहा मन मन के हाथों,
तुम राह दिखाओ कान्हा ।
जीत सकूँ स्वयं स्वयं के आगे ,
स्वयं को हर ले जाओ कान्हा ।
नयन बिलोकत पल छिन पल छिन ,
सखी सी प्रीत निभाओ कान्हा ।
भाव भरे यह मन भीतर गहरे ,
गोपी सा रास रचाओ कान्हा ।
गीत गढूं नित नित तेरे ,
अधरन प्यास बुझाओ कान्हा ।
विनय यही बस लाज रखो मेरी ,
"निश्चल"को न बिसराओ कान्हा ।
आओ कान्हा, दया दिखाओ कान्हा ।
छाओ चित में,मोहे न बिसराओ कान्हा ।
आओ कान्हा दया दिखाओ कान्हा ।
दुःशासन से लाज बचाओ कान्हा ।
मूक भीष्म द्रोण बिदुर सभी ,
चक्र सुदर्शन चलाओ कान्हा ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 5(134)
दया दिखाओ कान्हा ।
छाओ चित में,
मोहे न बिसराओ कान्हा ।
करुण पुकार सुनो मेरी,
तुम कृपा बरसाओ कान्हा ।
हार रहा मन मन के हाथों,
तुम राह दिखाओ कान्हा ।
जीत सकूँ स्वयं स्वयं के आगे ,
स्वयं को हर ले जाओ कान्हा ।
नयन बिलोकत पल छिन पल छिन ,
सखी सी प्रीत निभाओ कान्हा ।
भाव भरे यह मन भीतर गहरे ,
गोपी सा रास रचाओ कान्हा ।
गीत गढूं नित नित तेरे ,
अधरन प्यास बुझाओ कान्हा ।
विनय यही बस लाज रखो मेरी ,
"निश्चल"को न बिसराओ कान्हा ।
आओ कान्हा, दया दिखाओ कान्हा ।
छाओ चित में,मोहे न बिसराओ कान्हा ।
आओ कान्हा दया दिखाओ कान्हा ।
दुःशासन से लाज बचाओ कान्हा ।
मूक भीष्म द्रोण बिदुर सभी ,
चक्र सुदर्शन चलाओ कान्हा ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 5(134)
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