शनिवार, 8 सितंबर 2018

जलधर माला छंद

जलधरमाला छंद*

विधान~
[मगण भगण सगण मगण]
(222   211  112  222)

 कान्हा बैठा , मचल यशोदा गोदी ।
 रूठी वा से , नटखट राधा छोरी ।
 पूछे भोला , बनकर मैं तो श्यामा ।
 राधा काहे , लगत सलोनी गोरी ।

डूबा  है ये ,  नभ झरते पानी से ।
 भींगी सारी , अचल धरा पानी से ।
 धोता जाता , धुलकर नादानी को ।
 आता लाता , भरकर वो पानी को ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

डायरी 5(131)

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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