595
सफ़र फिर ख़ामोश रहा ।
इतना ही पर होश रहा ।
कदम धरे गिन गिन कर ,
रिश्तों में हर जोश रहा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
596
जितना मैं मगरूर रहा ।
उतना खुद से दूर रहा ।
नफ़रत के प्याले भरकर ,
मदहोशी में मैं चूर रहा ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
597
कलम थम सी गई है ।
स्याही जम सी गई है ।
एक गुबार है वक़्त का ,
चाहत *खम* सी गई है ।
..."निश्चल"@...
*खम/घुमाव*
598
बे-वक़्त बे-करार दिल ।
तूफ़ां से टकराता साहिल ।
छोड़ती किनारा दरिया में कश्ती ,
नाख़ुदा हुआ जो हांसिल ।
..."निश्चल"@...
599
फ़ासला-ए-मंज़िल बेहिसाब हो ।
होंसला मगर लाजवाब हो।
तू जीतकर ख़ुद को ख़ुद से ,
ख़ुद का ही तू शहज़ाद हो ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
600
तुम देखो कुछ इस तरह ।
जुस्तजू न रहे जिस तरह ।
न रहे याद फ़रियाद भी कोई ,
हाथ दुआ उठे कुछ उस तरह ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 3
सफ़र फिर ख़ामोश रहा ।
इतना ही पर होश रहा ।
कदम धरे गिन गिन कर ,
रिश्तों में हर जोश रहा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
596
जितना मैं मगरूर रहा ।
उतना खुद से दूर रहा ।
नफ़रत के प्याले भरकर ,
मदहोशी में मैं चूर रहा ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
597
कलम थम सी गई है ।
स्याही जम सी गई है ।
एक गुबार है वक़्त का ,
चाहत *खम* सी गई है ।
..."निश्चल"@...
*खम/घुमाव*
598
बे-वक़्त बे-करार दिल ।
तूफ़ां से टकराता साहिल ।
छोड़ती किनारा दरिया में कश्ती ,
नाख़ुदा हुआ जो हांसिल ।
..."निश्चल"@...
599
फ़ासला-ए-मंज़िल बेहिसाब हो ।
होंसला मगर लाजवाब हो।
तू जीतकर ख़ुद को ख़ुद से ,
ख़ुद का ही तू शहज़ाद हो ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
600
तुम देखो कुछ इस तरह ।
जुस्तजू न रहे जिस तरह ।
न रहे याद फ़रियाद भी कोई ,
हाथ दुआ उठे कुछ उस तरह ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 3
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