620
दुनियाँ कमतर ही आँकती रही।
चुभते तिनके से आँख सी रही ।
फैलते रहे दरिया से किनारे पे ,
दुनियाँ इतनी ही साथ सी रही ।
....
621
मुझे समझने के लिए, फ़िकर चाहिए ।
निग़ाह नज़्र में , आब जिकर चाहिए ।
न समझ हो कुछ , समझने के लिए ,
फक़त दिल , इतना ही असर चाहिए ।
..
622
इस वक़्त से नही कुछ भला है ।
नहीं इस वक़्त से कुछ भला है ।
गुजरता रहा हाल हर हालात से ,
मेरे सवाल का ज़वाब ये मिला है ।
...
623
कुछ दिन की कतरन है ।
सब रीते से ही बर्तन है ।
रीते से दिन खाली खाली ,
रातों का उतरा यौवन है ।
....
624
दिल की यूँ झोली भर लो ।
खुशियों की बोली कर लो ।
डूबकर खुशी के समंदर में ,
जिंदगी कुछ होली कर लो ।
... ...
625
कुछ फैसले किताबो से ।
कुछ फैसले मिज़ाज़ो से ।
बदल कर मिजाज अपना,
झुकते रहे जो सहारों से ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 3
दुनियाँ कमतर ही आँकती रही।
चुभते तिनके से आँख सी रही ।
फैलते रहे दरिया से किनारे पे ,
दुनियाँ इतनी ही साथ सी रही ।
....
621
मुझे समझने के लिए, फ़िकर चाहिए ।
निग़ाह नज़्र में , आब जिकर चाहिए ।
न समझ हो कुछ , समझने के लिए ,
फक़त दिल , इतना ही असर चाहिए ।
..
622
इस वक़्त से नही कुछ भला है ।
नहीं इस वक़्त से कुछ भला है ।
गुजरता रहा हाल हर हालात से ,
मेरे सवाल का ज़वाब ये मिला है ।
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623
कुछ दिन की कतरन है ।
सब रीते से ही बर्तन है ।
रीते से दिन खाली खाली ,
रातों का उतरा यौवन है ।
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624
दिल की यूँ झोली भर लो ।
खुशियों की बोली कर लो ।
डूबकर खुशी के समंदर में ,
जिंदगी कुछ होली कर लो ।
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625
कुछ फैसले किताबो से ।
कुछ फैसले मिज़ाज़ो से ।
बदल कर मिजाज अपना,
झुकते रहे जो सहारों से ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 3
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