रविवार, 3 मार्च 2019

मुक्तक 631/637

631
हर्फ़ हर्फ़ जिंदा ना रहे ।
इतना वो शर्मिंदा रहे ।
कह गए हालात-ए-हक़ीक़त,
इंसान मगर संजीदा ना रहे ।
...
632
यह कैसे कल की चाहत है ।
 आज लम्हा लम्हा घातक है ।
उठ रहे हैं तूफ़ान खामोशी के ,
साहिल पे नही कोई आहट है ।
.....
633
शेष नही कही समर्पण है ।
मन कोने में टूटा दर्पण है ।
आश्रयहीन अभिलाषाएं ,
अश्रु नीर नयनो से अर्पण है ।
......
634
क्यों आग लगी अमन को मेरे ।
क्यों दाग लगे चमन को मेरे ।
गद्दार हुए साजिश में शामिल ,
क्यों ज़ख्म मिले वतन को मेरे ।
......
635

2122    1212    22 
शान में देश की बता दें हम ।
जान ये देश पे लुटा दें हम ।
आँख कोई उठाये जो देश पर,
घूल में अब उसे मिला दें हम ।
.... 
636

2122 1212 22

शान में देश की बता देंगे ।
जान ये मुल्क पे लुटा देंगे ।
आँख कोई उठाये जो हम पर ,
घूल  में   हम  उसे  मिला देंगे ।
.... 
637

झूठ सदा हारे जीते बस सच्चाई ।
सौहार्द तले चलें मिल भाई भाई 
अमन घुले माँ तेरी इस माटी में ,
सौगंध यही बस माता की खाई ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@....

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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