रविवार, 3 मार्च 2019

मुक्तक 626/630

626

सफ़र इन राहों पर अनन्त विस्तार सा ।
 मिलता हर मोड़ पर जीवन श्रृंगार सा ।
 मिलता पथ मन उपवन तपन ढ़ले ही ,
 हर्षित पथ तृष्णाओं के तिरस्कार सा ।
   .....
627

हर हाल बे-हाल कचोटते रहे ।
कुछ ख़ुश ख़याल खोजते रहे ।
चलते रहे सफ़र जिंदगी के ,
ये हाल दिल  मगर रोज से रहे ।
.. ....
628
एक उम्र की तलाश सी ।
एक अधूरी सी आस सी ।
गुजरता रहा उम्र कारवां,
साथ लिए हसरत प्यास सी
.....
629

खुद को खुद में खोता है ।
ज़ीवन तो एक धोखा है ।
जीवन ने ज़ीवन की ख़ातिर,
खुद को खुद में रोका है ।
...
630

जीत नही कहीं , न ही हार कही ,
जीवन में मिलता, आकार नया है ।
आज रुका नही , कल साथ नही ,

यही नियति का , नित सिंगार नया है ।
631

रख जरा तू सामने आईने अपने ।
तू पूछ जरा खुद से मायने अपने ।


... विवेक दुबे"निश्चल"@..



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